Tuesday, March 19, 2013

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे

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सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे

छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि,
... मस्तक सब बिक जाएंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे |

कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे 

कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है
होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझाएंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे....

चुटपुटकुले 
ये चुटपुटकुले हैं, 
हंसी के बुलबुले हैं। 
जीवन के सब रहस्य 
इनसे ही तो खुले हैं, 
बड़े चुलबुले हैं, 
ये चुटपुटकुले हैं।
माना कि 
कम उम्र होते 
हंसी के बुलबुले हैं, 
पर जीवन के सब रहस्य 
इनसे ही तो खुले हैं, 
ये चुटपुटकुले हैं।
ठहाकों के स्त्रोत 
कुछ यहां कुछ वहां के, 
कुछ खुद ही छोड़ दिए 
अपने आप हांके। 
चुलबुले लतीफ़े 
मेरी तुकों में तुले हैं, 
मुस्काते दांतों की 
धवलता में धुले हैं, 
ये कविता के 
पुट वाले 
चुटपुटकुले हैं।

कौन रंग फागुन रंगे


कौन रंग फागुन रंगे
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत,
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।

रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।

रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,
साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग।

पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,
रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप।

मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।

होठोंहोठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,
गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात।

अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीदे छंद।

अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,
गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ।

पारा, पारस, पद्मिनी, पानी, पीर, पलाश,
प्रंय, प्रकर, पीताभ के, अपने हैं इतिहास।

भूली, बिसरी याद के, कच्चेपक्के रंग,
देर तलक गाते रहे, कुछ फागुन के संग।
- दिनेश शुक्ल
* * *

dhup ke kisse


aaj mangalwar hai


koyaal boli


aalo kachalu


gulab ka ful



Sunday, March 17, 2013

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thanks for visiting blog 

मुसीबत में खड़ा है मुल्क तू अब जात में न जा
जो नेता याद आये तो तू उसकी बात में मत जा
वो तो खुद को चरम पंथी धरम पंथी बताता है
और पाके सीट बह हर सैय को तेरी बह भूल जाता है
कभी खाने को जिसके घर में यू तो रोटिया न थी
वो सोने के घरो में आसिया आपना बनता है
कभी जो घूमता था एक सस्ती सी लंगोटी में
रुपये लाखो के वो तो आज एक रूमाल लेते  है 

जीवन क्या दुःख सुख गीत मिलन
जीवन क्या हसी ठहाका है
जीवन एक रेलम पेला है
जीवन पैसे का खेला है
जो जीते बिन माँ बाप के है
जीवन उनका तो झमेला है
जीवन बहती एक धर सही
जीवन गीता का सार सही
जीवन एक जटिल पहेली है
सुख दुःख जिसकी दो सहेली है
मत समझ की जीवन पार हुआ
जब मौत का तुझमे वार हुआ
मर कर भी पार न पाओगे फिर से तुम जीवन पाओगे
तू काम यहाँ कुछ ऐसा कर
तू नाम यहाँ कुछ ऐसा कर
जीतेजी  पार लगे नैया
तुझको बस प्यार करे दुनिया 

हर चीज बिक रही है, बस मोल चाहिए !

हर पोल खुल रही है ,बस झोल चाहिए !!

Monday, March 11, 2013

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