Wednesday, June 24, 2015

sayar nahi hu

mai sayar nahi bas aashik hu
sayari to sikha di hai tere pyar ne

ye tere pyar ka hunar jo
hum bhi sayar hua ja rahe hai

jo teri jhela si aakhe hai
nikale deti nahi hai

hum tere husn ke kayal hua jaa rahe hai


dub kar teri baato ki gahrai me
hum to sayar hua jaa rahe hai




thanks for reading
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kavihindi@gmail.com

my sayri two lines

हर चीज बिक रही है बस मोल चाहिए 
हर पोल खुल रही है बस झोल चाहिए

Tuesday, March 19, 2013

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे

FILE
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे

छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि,
... मस्तक सब बिक जाएंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे |

कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे 

कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है
होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझाएंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे....

चुटपुटकुले 
ये चुटपुटकुले हैं, 
हंसी के बुलबुले हैं। 
जीवन के सब रहस्य 
इनसे ही तो खुले हैं, 
बड़े चुलबुले हैं, 
ये चुटपुटकुले हैं।
माना कि 
कम उम्र होते 
हंसी के बुलबुले हैं, 
पर जीवन के सब रहस्य 
इनसे ही तो खुले हैं, 
ये चुटपुटकुले हैं।
ठहाकों के स्त्रोत 
कुछ यहां कुछ वहां के, 
कुछ खुद ही छोड़ दिए 
अपने आप हांके। 
चुलबुले लतीफ़े 
मेरी तुकों में तुले हैं, 
मुस्काते दांतों की 
धवलता में धुले हैं, 
ये कविता के 
पुट वाले 
चुटपुटकुले हैं।

कौन रंग फागुन रंगे


कौन रंग फागुन रंगे
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत,
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।

रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।

रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,
साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग।

पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,
रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप।

मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।

होठोंहोठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,
गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात।

अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीदे छंद।

अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,
गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ।

पारा, पारस, पद्मिनी, पानी, पीर, पलाश,
प्रंय, प्रकर, पीताभ के, अपने हैं इतिहास।

भूली, बिसरी याद के, कच्चेपक्के रंग,
देर तलक गाते रहे, कुछ फागुन के संग।
- दिनेश शुक्ल
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dhup ke kisse


aaj mangalwar hai